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Saturday, October 9, 2010

एक अरसा बीत गया है .....

एक  अरसा बीत  गया  है .....
एक  अरसा  बीत  गया  है, तपिश  गई  नहीं  है  मेरे  माथे  से 

सोचकर  सोइ  , की  कल  सुनहरा  दिन  है  तुम्हारा 
सुबह  सबसे  पहले  मुझे  छुओगे 
तो मेरा  दिन  सुनहरा  हो  जायेगा  ,

सूरज  से  पहले  जाएगी  थी , बुखार  का  बहाना  बनाया  था 
पर  कम्बख्त  अखबार  मुझसे  पहले  आ  गया  दुनिया  जहां  की  खबरें  लेकर  …

एक  अरसा  बीत  गया  है , वो  आवाज़  अब  तक  गूँज  रही  है  कानो  में 
ग्यारह  महीनो  में  तीसरी  बार  मुझे  मेरे नाम से  पुकारा  था  तुमने 
वैसे  लोग  कहते  रहते  हैं ,  नाम  ख़ूबसूरत  है  मेरा 
पर  जब  तुम  से  सुनती  हु   तो  लोगों  की  बातों  पर  यकीन  आता  है ..

एक  अरसा  बीत  गया  है , वो  मुस्कान  धुंधली   नहीं   हुई  है  आँखों  से ..
तुम्हे  पता  नहीं  है  शायद , कोशिश  जरूर  करते  हो 
पर  छुपा  नहीं  पाते  हो  अपनी  मुस्कराहट 
कम्बख्त  लम्बी  इतनी  है , की  मुँह  फ्लो  फिर  भी  दिख  जाती  है …


एक  अरसा  बीत  गया  है  तपिश  गई  नहीं  है 
मेरे  माथे  से , मेरे  कानो  से  , मेरी  आँखों  से ..
एक  अरसा  बीत  गया  है ….

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