वो खून, पुलवामा की मिटटी जिससे लाल रंगी है
क्या तेरी-मेरी नसों में गुस्सा बनकर दौड़ेगा
वो शोर जो मचा था, वो चीखें जो उठीं थीं
क्या वो तेरे-मेरे कानों को चीर देने वाली हैं
वो जो मौत का तांडव देखा, उन्होनें
क्या वो तेरे-मेरे सर पर चढ़कर बोलेगा कभी
या फिर
दो-चार दिन, तू और मैं मिलकर गालियां देंगे
कोसेंगे, तिलमिलायेंगे अपने टीवी के सामने, सोफे पर बैठे
क्यूंकि भूख तो लगेगी, तू और मैं लग जाएंगे अपने काम में - कमाई में
क्यूंकि घर तो चलाना है, दुआ के लिए दिया तो जलाना है
या फिर
तू और मैं आज उस खून, उस चीख और उस त्याग की शपथ लें
की उन वीरों की शहादत को ज़ाया नहीं जाने देंगे
हम आंच तो क्या, अब देश पे एक खरोंच भी ना आने देंगे
राजनीती के फेर में, दुनिया को तू और मैं अलग-अलग न दिखें
कुछ भी हो, किसी भी कीमत पे इंसानियत ना बिके
दुनिया ये समझ ले, की देश ही तेरा- मेरा धर्म और देशप्रेम ही भक्ति है
और ये भी जान ले की हमारी एकता ही 'महाशक्ति' है