चार सिक्के दिए थे तुमने , शगुन के नाम पे ...
एक सिक्का , मन्नत मांगकर रुमाल में बंधा ,
सात उपवास किये , फिर एक मंदिर में दान कर दिया
सुना था ....
इकट्ठे किये सिक्कों से वृद्धाश्रम बनाने वाले हैं ...
आज गई थी सोचकर बुज़ुर्गों का आशीर्वाद ले आउ
बेज़्ज़ार सा था सब , उजड़ा था , सीढ़ियों पर एक आदमी बैठा था अधमरा सा
बताने लगा ,
वृद्धाश्रम बनाने भाग गया है , सब सिक्के लेकर
एक सिक्का उस भिखारी को दिया था, मेरे घर के नीचे बैठा करता है जो
उसका बीटा भी साथ था उस दिन ,
कहने लगा कल त्यौहार है , इससे एक पतंग लूंगा ,
आज फिर वहीँ बैठा था , पूछा मैंने पतंग खरीदी तूने
बोला पिताजी गए हैं पतंग लेने ….
कहकर गए हैं आज से यही बैठना मेरी जगह पर ..
एक सिक्का एक सहेली की शादी में
कुछ नोटों के साथ दिया था
खुश थी सोचकर की कहीं तोह शगुन का सिक्का …शगुनी हो रहा है
सहेली भी खुश थी नए संसार में , नए परिवार में
आज खबर आई है की उसको जला दिए है ...
कुछ लोगो ने , कुछ और सिक्को की खातिर .....
आखरी एक सिक्का , अपने पास ही रख लिया है मैंने ,
इंसान हु ना , खुदगर्ज़ हु शायद
जब तक मेरी अलमारी में रखा है , शगुन का सिक्का है ,
दान , भीख या उपहार में दे दिया
तो अपशगुनी हो जाएगा ......
1 comment:
Very touching...
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