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Tuesday, June 9, 2015

मेरी आज़ादी




कल जब यूँही फुर्सत  में  हमने 
इस  किताब  के  बीते  हुए  पैन  पलटे
तो  आगे  की  कहानी  को  नए  रंग  मिले 

जो  माँगा  वो  मिल  जाता  अगर ,
खुद  को  खो  दिया  होता  मैंने 
हम  मिले  हैं , तो   आओ  दूर  तक  संग  चलें

तुम  वो   हो  जो  साथ  निभाता  है 
वो  नहीं  जो  सिर्फ  जताता  है 
बात मामूली  ही  सही  पर  मेरे  लिए  ख़ास  है 

मेरा  "so called Idea" जब  भी  सुना  है 
अपनी  नज़र  नहीं , बस  नज़रिया  दिया  है 
ये  जानते  हुए  की  implementation सत्यानाश  है 

मैं अगर  न  समझू  ये  मेरी  बदनसीबी  है  
जो  बात  समझने  में  एक  किताब  लगे  
वो  दो  तीन  लफ्ज़ो  में कह  दिया  तुमने 

न  रीत  रिवाज  न रहें  सेहेन  न  सोच  की  पाबन्दी  कोई  
शादी  के  रिश्ते  में  जो  अक्सर  खो  जाता  है  
मुझे  बार बार  वो  दिया  तुमने 

    " मेरी आज़ादी "

1 comment:

ksharma said...

welcome back..........:)