कल जब यूँही फुर्सत में हमने
इस किताब के बीते हुए पैन पलटे
तो आगे की कहानी को नए रंग मिले
जो माँगा वो मिल जाता अगर ,
खुद को खो दिया होता मैंने
हम मिले हैं , तो आओ दूर तक संग चलें
तुम वो हो जो साथ निभाता है
वो नहीं जो सिर्फ जताता है
बात मामूली ही सही पर मेरे लिए ख़ास है
मेरा "so called Idea" जब भी सुना है
अपनी नज़र नहीं , बस नज़रिया दिया है
ये जानते हुए की implementation सत्यानाश है
मैं अगर न समझू ये मेरी बदनसीबी है
जो बात समझने में एक किताब लगे
वो दो तीन लफ्ज़ो में कह दिया तुमने
न रीत रिवाज न रहें सेहेन न सोच की पाबन्दी कोई
शादी के रिश्ते में जो अक्सर खो जाता है
मुझे बार बार वो दिया तुमने
" मेरी आज़ादी "
1 comment:
welcome back..........:)
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