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Tuesday, September 20, 2016


एक यादों का पुलिंदा है या माँ तू अब भी ज़िंदा है़ ।

मेरे बनाए खाने में तेरे हाथों का स्वाद है जो कुछ सिखाया तूने, मुझे आज भी याद है।

तेरे चले जाने के बाद वो कपड़े बांट लिए हमनेहमसे सब छीना तेरी खुशबू नहीं छीनी ग़म ने ।

मेरे सो जाने के बाद भी, जो इन बांलों को सहलाती थींवो उँगलियाँ आज भी मुझे रातों को छू जातीं हैं ।

जब एक त्योहार पर तुम सा श़ृंगार किया आईने में, तुम्हारी ही छब का दीदार किया ।

मेरी हर बात में , तेरी ही आवाज़ हैमेरे हर काम में तेरा ही एहसास है ।

ना ख्वाब, ना ख्याल, ना यादों का पुलिंदा है 

 मेरी माँ  तू 

"मुझ" में जिंदा है ।




2 comments:

Anurakshi said...


HAR DIN ZINDAGI KA NAYA AGGAZ THA..
RUKTA NAHI JO WAQT BHI MERE SATH THA..

DOORI THI MERI HAR MANZIL SE PAR HOSLA TERA MERE SATH THA..
PALIYA HAI JAB SAB KUCH JO CHAHA, PAR APANA NAHI LAGTA..
MAA MERA APNA TO BAS TERA SATH THA ,TERA HI NAAM THA ..

SIKHA HAI TUJSE KI ZINDAGI RUKTI NAHI ..
PAR RUKTI HAI GADDIYAA, JAB US KURSI PE TUM DIKHATI NAHI..



Life Reflects ! said...

Thanks for your Comment...very well written .